कोरोना से नहीं, अस्पताल से डर  लगता है लोगों को !


मृत्यु दर घटकर 3 प्रतिशत, 44 फीसदी लोग स्वस्थ  होकर घरों को लौटे 


प्रीति सोमपुरा 

मुंबई में कोरोना के मरीजों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है, जिससे वह बेहाल है। महानगर के अस्पतालों में मरीजों के लिए बिस्तर नहीं मिल रहे हैं।  लगभग सारे अस्पताल कोरोना मरीजों से भरे पड़े हैं। यह हाल सिर्फ सरकारी अस्पतालों का नहीं, बल्कि निजी अस्पतालों का भी है। महाराष्ट्र में कोरोना मरीजों की संख्या करीब एक लाख तक पहुंच गयी है। अकेले मुम्बई में ही  55000 कोरोना मरीज हैं। अनलॉक-1 के तहत मुम्बई के निजी दफ्तर शुरू हो गए हैं। मुम्बईकर ऑफिस व अपने कामों पर जाने तो लगे हैं लेकिन जाने के लिए बेस्ट की बस में बैठने की जगहें नहीं हैं। साथ ही बेस्ट की बसें सिर्फ निर्धारित रूटों पर ही जा रही हैं। ऐसे में लोगों को दफ्तर पहुंचने में 4 से 5 घंटे लग रहे हैं। लोकल ट्रेन सेवा बंद होने से मुम्बई के बाहरी उपनगरों वसई, विरार, कल्याण, पनवेल, नवी मुम्बई आदि में रहने वाले लोग मुंबई नहीं पहुंच पा रहे हैं। ऐसे में लगातार बढ़ रहे कोरोना मरीजों की संख्या से मुम्बई महानगर पालिका और महाराष्ट्र सरकार दोनों ही परेशान हैं।













मुम्बई के निजी अस्पतालों में जगह नहीं रह गई है। साथ ही सरकारी अस्पतालों का हाल यह है कि  यहाँ बेड न होने से एक ही बेड पर कई संक्रमितों को रखा जा रहा है। यहां तक कि अस्पतालों के गलियारों में मरीजों का इलाज चल रहा है। कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए हैं जिनमें शवों को उठाने के लिए कोई वार्ड बॉय तक नहीं हैं। मृत शरीर  कोरोना के मरीजों के साथ ही बिस्तरों पर हैं। अस्पतालों में बेड नहीं, मृतकों को उठाने के लिए कोई नहीं। यहाँ तक कि एम्बुलेंसें भी 8-9 घंटों के बाद पहुंच रही हैं। मुम्ब्रा में तो महज २०० मीटर दूर अस्पताल में मरीज को शिफ्ट करने के लिए एक एम्बुलेंस ने ८००० रुपये लिए। मुंबई के एक अस्पताल में ७ दिन भर्ती हुए एक मरीज का बिल ७ लाख रुपये आया। अब तो मुम्बई के श्मशानों ने भी टोकन सिस्टम शुरू कर दिया है। यानी कि अंतिम संस्कार करने में भी लम्बी कतारें लग रही हैं। यहां भी वेटिंग पीरियड है। बोरीवली पश्चिम के एक श्मशानगृह ने तो अंत्येष्टि के लिए एपॉइंटमेंट देना शुरू कर दिया है। 

मुम्बई में अब तक 2000 लोगों की मौत हो चुकी है। इनमें से 25 प्रतिशत ऐसे मरीज थे जिन्होंने समय पर इलाज न मिलने से अपनी आंखें मूंद लीं। अनेक अस्पतालों में वेंटिलेटर नहीं हैं तो कई अस्पतालों में ऑक्सीजन की सप्लाई कम है। इस महामारी में जो किडनी, हार्ट और कैंसर के मरीज हैं उन्हें भी ट्रीटमेंट नहीं मिल रहा है। अस्पतालों में 80 फीसदी बेड कोरोना की बीमारी से लड़ने के लिए रिजर्व हैं। ऐसे में मुम्बईकरों को कोरोना से नहीं वरन चरमरा गयी स्वास्थ्य सेवा से डर  लगने लगा है।

मुम्बई में निजी अस्पतालों द्वारा इलाज के लिए मनमाने रेट वसूले जाने की शिकायतों के बाद महाराष्ट्र सरकार ने कोरोना मरीजों के लिए शुल्क तय किया है, लेकिन  निजी अस्पताल इसे मानने के लिए तैयार नहीं हैं। सरकार ने 5 बड़े अस्पतालों को नोटिस भी दिया है लेकिन कुछ नहीं हुआ। 

कोरोना के इलाज के लिए घाटकोपर निवासी रोहित पारीख मालाड के एक निजी अस्पताल में 17 मई को भर्ती हुए और 1 जून को जब डिस्चार्ज हुए तो अस्पताल ने बिल में कोविड चार्ज लगाया। साथ ही 900 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से नर्सिंग चार्ज भी वसूला। निजी अस्पतालों में ट्रीटमेंट ले रहे ज्यादातर मरीजों की शिकायत है कि उनसे ज्यादा पैसे वसूले जा रहे हैं क्योंकि निजी अस्पतालों को भी पता है कि मरीज इंश्योरेंस कम्पनियों से क्लेम करेगा। निजी अस्पतालों  की दलील है कि उनके पास बेड  नहीं हैं। इसके बावजूद वे उपचार कर रहे हैं। ऐसे में कोविड-19 के मरीजों के पास निजी अस्पतालों में जाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं रह गया है।

मुंबई महानगर पालिका ने एक डेश बोर्ड बनाया है जिसमें यह  जानकारी मिलती है कि कौन से अस्पताल में कितने बेड खाली हैं। अक्सर इसमें कुछ बेड खाली दिखाए जाते हैं लेकिन जब अस्पताल में फोन किया जाता है तो पता चलता है कि बेड नहीं है।

मुम्बई के बोरीवली में रहने वाली निकिता वाडिया का कहना है कि उसके पड़ोसी को कोरोना हो  गया। लगातार ५ घंटे फोन करने के बाद एक अस्पताल में बेड तो मिला लेकिन मरीज को अस्पताल तक पहुंचाने के लिए कोई एम्बुलेंस ही नहीं मिली। आखिर दूसरे दिन एम्बुलेंस मिली और इलाज शुरू हुआ। एक तो कोविड की रिपोर्ट आने में 2 दिन लगते हैं। उसके बाद एक दिन अस्पताल ढूंढ़ने में और 4-5 घंटे एम्बुलेंस आने में लग जाते हैं। कोरोना मरीजों के इलाज में देरी हो रही है। जब तक मरीज अस्पताल  पहुँचता है, उसका ऑक्सीजन लेवल काफी कम हो चुका रहता है। अगर एक दिन में ही लैब द्वारा रिपोर्ट दी जाए तो तुरंत इलाज शुरू हो सकता है।

मुम्बई के एक निजी अस्पताल में  सेवा दे रहे डॉक्टर जतिन शाह का कहना है कि कई मामलों में देखा गया है कि मरीज की रिपोर्ट नेगेटिव आती है लेकिन जब छाती का एक्सरे निकालते हैं तो उसमें संक्रमण पाया जाता है। २ दिनों के बाद फिर से जांच करने पर रिपोर्ट पॉजिटिव आती है। ऐसे में जरूरी है कि मरीजों का ट्रीटमेंट तुरंत शुरू किया जाए। 

मुम्बईवासियों को अब कोरोना से डर कम और अस्पताल से ज्यादा  लग रहा है। वैसे एक अच्छी खबर यह भी है कि मुम्बई में कोरोना मरीजों के दोगुना होने की दर बढ़कर अब 24 दिन हो गयी है और मृत्यु दर घटकर 3 प्रतिशत। वैसे अब तक 44  फीसदी लोग स्वस्थ  होकर अपने घरों को लौट चुके हैं।