नहीं मिल रहे श्रमिक, कैसे होंगे महाराष्ट्र के उद्योग पुनर्जीवित!

श्रमिकों के ना होने से उत्पादन पर असर 


प्रीती सोमपुरा 



कोरोना के कहर से मुंबई समेत पूरे महाराष्ट्र से करीब १३ लाख श्रमिक अपने गांवों को चले गए हैं। इसके चलते मुंबई और महाराष्ट्र का हाल यह है कि फैक्ट्रियां फिर से शुरू करने के लिए श्रमिक नहीं मिल रहे है। छोटे व्यापारियों से लेकर छोटी-बड़ी औद्योगिक इकाइयां इस समस्या से परेशान हैं। 

देश की आर्थिक राजधानी मुंबई लॉकडाउन के ढाई महीने के बाद धीरे-धीरे पटरी पर आनी शुरू हुई थी, ऐसे में बारिश ने ब्रेक लगाकर रफ़्तार को और धीमा कर दिया है। मुंबई में निजी दफ्तर अभी तक शुरू भी नहीं हुए हैं। मार्केट पूरी तरह से खुले भी नहीं हैं। ऐसे में श्रमिकों की भारी किल्लत महसूस हो रही है। जब मार्केट पूरी तरह से खुल जाएगा, तब तो यह समस्या और भी गंभीर हो जायेगी।

मुंबई का हाल यह है कि नालों की  सफाई करने के लिए मुंबई महानगर पालिका के पास कोई कर्मचारी नहीं है। इतना ही नहीं,  नाला सफाई के लिए जरूरी जेसीबी चलाने वाले कांन्ट्रेक्टर के पास कोई मजदूर नहीं है। मुंबई में नाला सफाई आम तौर पर १ जून तक हो जाती है लेकिन इस बार  लॉकडाउन के कारण श्रमिकों के छोड़ जाने से इस बार सफाई नहीं हो पायी है। इतना ही नहीं, महाराष्ट्र के बाकी हिस्सों में हाल यह है कि फैक्ट्री मालिक तो अपनी इंडस्ट्री शुरू करना चाहता है, लेकिन श्रमिक नहीं मिल रहे हैं। नासिक के सिन्नर के पास ट्यूबलाईट बनाने वाली एक कम्पनी के मालिक का कहना है कि उसके ७०% कर्मचारी महाराष्ट्र छोड़कर चले गए हैं। जो बचे हैं वे  स्थानीय लोग हैं। इंडस्ट्री शुरू कर भी रहे हैं तो स्थिति यह है कि जिस बल्ब उत्पादन कंपनी में रोज १०००० बल्ब बनते थे आज उसमें महज २००० बल्बों का ही निर्माण हो रहा है। जो कर्मचारी उत्तर प्रदेश और बिहार चले गए हैं, वे लौटकर आने के लिए तैयार नहीं हैं। ऐसे में स्थानीय लोगों की मांग बढ़ जाने से वे अनाप-शनाप वेतन मांगने लगे हैं। जब उत्पादन ही नहीं हो रहा है तो ऐसे में उनका वेतन कैसे बढाएं! 

यही हाल इगतपुरी के पास मिर्ची पावडर बनाने की फैक्टरी चलाने वाले मोहन अग्रवाल का है। पिछले ढाई महिनों में लॉकडाउन के कारण उनकी फैक्ट्री में काम करने वाले ३५० लोगो में से २७५ लोग अपने गांव चले गए हैं। उन्होंने अपना काम तो शुरू कर दिया लेकिन लॉकडाउन के बाद अब मिर्ची पावडर और अन्य मसालों की मांग मार्केट में बढ़ गयी है। ऐसे में वे जरूरी माल का उत्पादन नहीं कर पा रहे हैं।

   मुंबई से सटे भिवंडी में करीब ८ लाख लोग पावरलूम व्यवसाय से जुड़े हैं, जिनमें से ४ लाख कारीगर आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और यूपी से हैं। ये सभी लोग अपने गांव लौट गए हैं। ७५ प्रतिशत कारीगर अपने घर चले जाने से यहाँ का पावरलूम उद्योग शुरू तो हुआ है परंतु काम करने वाले लोग ही नहीं बचे हैं। पावरलूम डेवलपमेंट एन्ड  एक्सपोर्ट प्रमोशन काऊंसिल के पुरषोतम वांगा का कहना है कि महाराष्ट्र सरकार  ने           पावरलूम शुरू करने की इजाजत तो दे दी है लेकिन हमारे पास काम करने। वाले लोग ही नहीं हैं। ऐसे में काम कैसे शुरू करें? अकेले भिवंडी पावरलूम्स से ही पूरे कपड़ा उद्योग का २ प्रश जीडीपी आता है। पिछले साल जीएसटी के विरोध में बंद के कारण हमें बहुत नुकसान उठाना पड़ा। अब इस साल ढाई महीने के लॉकडाउन ने हमारी कमर ही तोड़ दी है। हमने पावरलूम्स तो शुरू कर दिए हैं लेकिन इसमें काम करने के लिए पर्याप्त लोग ही नहीं मिल रहे हैं। पहिले ३ शिफ्टों में काम चलता था, अब एक शिफ्ट चलाने लायक भी कामगार नहीं हैं। ऐसे में सरकार ने मुंबई का बाज़ार अभी तक शुरू नहीं किया है। हमारे पास कच्चा माल अब नहीं है। यार्न मुंबई से आता है लेकिन मुंबई  का मार्केट ही अभी तक बंद है। ऐसे में पावरलूम शुरू करने का कोई फायदा नहीं है।  

    भिवंडी जैसा ही हाल मालेगाँव का है, जिसे 'भारत का मिनी मैनचेस्टर' कहते हैं। यहां ६ लाख पावरलूम हैें। इसमें काम करने वाले श्रमिक भी घर चले गए हैं। ऐसे में पावरलूम शुरू करें तो कैसे करें? यहाँ पावरलूम चलाने वाले अनवर शेख़ का कहना है कि उनके पास काम करने वाले लोगों में से ७० फीसदी यूपी चले गए हैं। अब वे अगले दो महीने तक लौटेने के लिए तैयार नहीं हैं। ऐसे में अब हम पास के धुले से लोगो को काम पर आने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन वे पैसे ज्यादा मांग रहे हैं। ऐसे में हम पावरलूम शुरू नहीं कर सकते। हमारे पास जरूरी कच्चा माल भी खतम हो गया है। मुंबई के बाज़ार बंद हैं और नासिक के बाजार में कच्चा माल  नहीं है क्योंकि यह माल सूरत से आता है। वहां के हाल भी हमारे जैसे ही हैं। यहाँ के श्रमिक भी अपने गांव चले गए हैं।

उद्योगपति राहुल बजाज का कहना है कि महाराष्ट्र में 60 फीसदीे से ज्यादा श्रमिक अपने गांव चले गए हैं। इंडस्ट्री का हाल यह है कि केंद्र सरकार जो निर्देश देती है उसके बाद राज्य का इंडस्ट्री शुरू करने के लिए नया  निर्देश आ जाता है। अब तो स्थानीय म्युनिसिपालिटी भी रोज एक नया आदेश निकाल  देती है। ऐसे में अब फैक्ट्रियां कैसे चलायेंगे!

    मुंबई के जुहू के एक बिल्डर ने बताया कि वे मुंबई में १० जगहों पर कमर्शियल बिल्डिंग बना रहे हैं जिनमें २००० से ज्यादा मजदूर काम करते थे लेकिन अब सिर्फ १५० श्रमिक  ही उनके पास हैं। ऐसे में वे काम कैसे शुरू करें? हर महीने उन्हें बैंक का १५ लाख रुपये ब्याज के तौर पर चुकाने पड़ते हैं। जब काम ही नहीं चल रहा है। ऐसे में हमें अपना भविष्य ही अंधकारमय लग रहा है। वैसे भी मुंबई में ४ महीने बारिश के कारण रियल एस्टेट का काम काफी हद तक ठप रहता है।  रियल एस्टेट का हाल यह है कि अब लोग घर खरीदने के लिए तैयार नही हैं। ग्राहक भी अगले ६ महीने तक 'वेट एंड वॉच' की स्थिति में हैं।

एक रिपोर्ट के मुताबिक़ महाराष्ट्र के १३ लाख मजदूर बिहार, यूपी, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा आदि चले गए हैं। ये लोग दवाई, केमिकल, वस्त्रोद्योग, कंस्ट्रक्शन आदि संबंधी कामों से जुड़े व्यवसायों में थे। अब ये लोग अगले ६ महीनों तक वापस मुंबई आना नहीं चाहते। श्रमिकों के बिना महाराष्ट्र के उद्योगों को पुनर्जीवन मिलना लगभग असंभव है।