"स्वयं सेवी संस्थाओं" ने दिया नागरिकों को "आधार
विनोद मिश्रा /भायंदर
समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध ।
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध ।।
उपरोक्त पंक्तियां राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की एक कविता का अंश है। जो आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना कविता की रचना काल में इसकी प्रासंगिकता रही होगी।
इस समय पूरा विश्व ही नही वरन देश और सभी राज्य भी कोरोना नामक वायरस के संक्रमण की महामारी से जूझ रहा है। राज्य सरकारें , स्थानीय स्वराज्य संस्थाएं (महानगर पालिका, नगरपालिका, जिला परिषद, ग्राम पंचायत), स्वास्थ्य विभाग, पुलिस प्रशासन आदि सभी कोरोना वैरियर (योद्धा) के रूप में दिन -रात लोगों को अपनी सेवाएं दे रहे हैं और कोरोना वायरस कोविड -१९ को मात देने के लिए प्रयासरत दिखाई दे रहें हैं। इन सब के बीच मे लोगों को सबसे अधिक कमी अगर खल रही है तो वह लोगों द्वारा मतदान के माध्यम से चुने गए जनप्रतिनिधियों की है। यह हाल और माहौल करीब करीब देश के सभी राज्य, जिले और निकायों में देखने को मिल रही है।
हम बात करते हैं मीरा भाइंदर शहर की।वर्ष २०११ की जनगणना के अनुसार इस शहर की कुल आबादी करीब १२ लाख है। जिसमें से करीब ३ लाख की आबादी चलायमान (फ्लोटिंग) आबादी है। जो रोजगार, व्यापार, शिक्षा आदि के लिए इस शहर में आते हैं और चले जाते हैं। मीरा भाइंदर महानगरपालिका अंतर्गत कुल ५ लाख ९३ हजार ३४५ मतदाता है। इस शहर को कुल २४ प्रभागों में बांटा गया है। जिसमें एक पैनल में ४ नगरसेवक के अनुसार कुल ९५ नगरसेवक लोगों द्वारा निर्वाचित हैं।बड़ी पार्टी के रूप में मीरा भाइंदर महानगरपालिका में भाजपा सत्ता में हैं
कोरोना महामारी के इस युद्ध मे शिवसेना विधायक प्रताप सरनाईक, अपक्ष विधायक गीता जैन, महापौर ज्योत्स्ना हसनाले,उपमहापौर हसमुख गहलोत, पूर्व उपमहापौर चंद्रकांत वैति, नगरसेविका स्नेहा पांडे- शैलेश पांडे, कुसुम गुप्ता- संतोष गुप्ता,नगरसेवक रोहिदास पाटिल, मदन सिंह, राजेंद्र जैन, राजीव मेहरा, राजू भोईर, ध्रुवकिशोर पाटील,पंकज( दरोगा) पांडे, हेमा बेलानी,प्रकाश( मुन्ना) सिंह, सारा अकरम, शर्मिला बगाजी आदि कुछ गिने चुने नगरसेवकों को छोड़ दिया जाए तो करीब करीब बाकी के सभी नगरसेवक आज भी किसी हारे हुए जुआरी के एजेंडे पर चलते हुए अपने -अपने घरों में दुबके हुए हैं। जबकि वर्तमान में उनके प्रभागों में उनकी नितांत आवश्यकता है।
अगर ईमानदारी से सभी नगरसेवक अपने अपने प्रभागों की जिम्मेदारी संभाल लेते तो इस "लॉक डाऊन" का सही मायने में पालन होता और कोरोना पीड़ित मरीजों की संख्या में इतनी वृद्धि भी नही होती और शहर सुरक्षित रहता। लेकिन आज शहर का यह हाल है कि मनपा आयुक्त अकेले इन सभी जिम्मेदारियों को अकेले निर्वहन करते करते खुद कन्फ्यूज हो गए हैं।
इस विपदा की घड़ी में शहरवासियों को यहां की स्वयं सेवी संस्थाओं ने एक बड़ा आधार दिया है। जो गरीब तबके के मजदूरों, और लोगों तक दिन रात अपनी सेवाएं दे रहे हैं। जिसमे राधा स्वामी सत्संग, केशव सृष्टि,प्रताप फाउंडेशन, शंकर झा,मीरा भाइंदर होलसेल ग्रेन शगर मर्चेंट एसो., श्री सपतेश्वर सालासर हनुमान मंदिर, श्री राजस्थानी जैन सेवा संघ, मुनीश्वर स्वामी जैन मित्र मंडल, आर के ड्रीम्स, फाइट फ़ॉर राइट, जीवन धारा सेवा संघ, भारतीय स्टील बफिंग (ऑप्) एसो. परिंदे फाउंडेशन आदि से जुड़े लोगों का समावेश है। इन स्वयं सेवी संस्थाओं के अलावा भी कुछ संस्थाए अपनी सेवा दे रहे हैं।
लेकिन शहर के नागरिकों को सबसे अधिक अपेक्षाएं जिन निर्वाचित नगरसेवकों से थी वे सब इस समर (युध्द) में नदारद हैं।संतप्त नागरिकों का उनसे सीधा सवाल है कि जब हम कई कई घन्टे लाईन लगाकर उनको मतदान करके विजयी बना कर अपने नागरिक धर्म का पालन करते हैं तो ऐसे विपदा में हमारे जनप्रतिनिधि अपने राजधर्म का पालन क्यों नही कर रहे है... क्यों अपने अपने घरों में दुबके हुए है.. .खुद को स्वघोषित कार्य सम्राट, विकास पुरुष कहलाने वाले इस संकट के समय कहाँ गायब हैं ..?