नीतिमय जीवन अर्थात  मार्गानुसारी  के 35 गुण



जीवन उत्थान के लिए पहले मानवीय गुणों (मार्गनुसारी जीवन) का अनुसरण करें ,फिर क्रमशः श्रावक के गुणों को धारण करते हुए मोक्ष मार्ग की और आगे बढ़ें। हमारे आचार्यों ने नीतिमय जीवन की सुंदर प्ररुपणा की है 


आइए! हम उसे जीवन में अपनाएं और जीवन उत्थान का प्रारंभ करें

 🌷1) न्याय संपन्न वैभव अर्थात नीति से व्यापार करते हुए वैभव प्राप्त करना चाहिए ।अनीति से उपार्जित धन न्याय  से प्राप्त धन को भी खींच कर ले जाता है ।🌷 2) ज्ञानी, सदाचारी ,गंभीर तथा उदार पुरुषों के आचारों की प्रशंसा करनी चाहिए ।उनके अच्छे  आचारों के अनुकरण का प्रयत्न करना चाहिए ।🌷3) अन्य गौत्र वाले परंतु समान कुल वाले एक जैसे आचार वालों के यहां अपने पुत्र- पुत्रियों का विवाह करना चाहिए। जिससे भविष्य में धर्म को लेकर आपस में कलह ना हो । 🌷4) पापों से डरते रहना चाहिए🌷 5) जिस देश में रहते हो उस देश के अनुसार वेशभूषा ,आभूषण तथा खाने-पीने का व्यवहार रखना चाहिए। लेकिन वह धर्म विरुद्ध ना हो ।🌷6)किसी भी व्यक्ति की निंदा नहीं करनी चाहिए। खासतौर पर राजा प्रधान ,नेता वगैरह की निंदा तो करनी ही नहीं ।🌷7) जिस घर में आने-जाने के दरवाजे ज्यादा हो उस घर में निवास नहीं करना चाहिए। इसी तरह चारों ओर से ढके हुए मकान में रहने से अग्नि आदि  के उपद्रव के समय बच निकलना  कठिन हो जाता है। पड़ोस में अच्छे लोग रहते हों, ऐसे घर में रहना चाहिए। 🌷8 ) सदाचारी लोगों की ही संगति करनी चाहिए। दुराचारी तथा मिथ्यादृष्टि लोगों का साथ छोड़ देना चाहिए ।🌷9 )जन्म देने वाले माता-पिता की पूजा अर्थात उचित सेवा करनी चाहिए ।🌷10)अकाल, महामारी शत्रु राजा  आदि  के सैनिकों की लड़ाई आदि उपद्रव जहां ना हो वहाॅ रहना चाहिए जिससे धर्म, अर्थ, काम का नाश ना हो । 🌷11) निंदनीय कार्यों में प्राणांत परिस्थिति में भी प्रवृत्ति नहीं करनी चाहिए ।🌷12 )अपनी आय  को देखकर खर्च करने वाला होना चाहिए।आय से ज्यादा खर्च करने वाला देनदार  तथा दु:खी बनता है। उदार बनना चाहिए, परंतु फिजूलखर्ची नहीं बनना चाहिए। 🌷13) अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार अपनी वेशभूषा रखनी चाहिए। निर्धन का आडंबर तथा श्रीमंत की कंजूसाई निंदा पात्र बनती है ।🌷14 )बुद्धि के 8 गुण अपनाने चाहिए। 🌷15) हमेशा धर्म का श्रवण करने वाला बनना चाहिए। धर्म का श्रवण करने से पुण्य- पाप के मार्गों की जानकारी होती है। 🌷16) पहले खाया हुआ पचने के पश्चात ही दूसरा भोजन करना चाहिए ।सही भोजन रुचि के बिना खाने से अजीर्ण होता है ।स्वास्थ्य बिगड़ता है और धर्म कार्य में अंतराय  पैदा होता है ।🌷17) भोजन करने के समय ही भोजन करना चाहिए, जब तब नहीं खाना चाहिए। 🌷18 )धर्म ,अर्थ और काम इन तीनों के पुरुषार्थो में इस तरह से प्रवृत्ति करनी चाहिए कि एक भी पुरुषार्थ को हानि ना हो। धर्म की प्रमुखता समझनी चाहिए क्योंकि धर्म के  आबाद रहने पर धन रहेगा  तो काम रहेगाा । इसलिए धर्म की हानि होने की परिस्थिति में अर्थ तथा काम (विषय -विलास) को छोड़ देना चाहिए।🌷19) यथाशक्ति दान देना चाहिए ।साधु -साध्वी ,श्रावक -श्राविका को सुपात्र दान समझ कर देना चाहिए। अन्य दु:खी जीवों पर दया की बुद्धि से अनुकंपा दान देना चाहिए।🌷20)हमेशा किसी भी बात में कदाग्रह नहीं रखना चाहिए। जो सत्य है वह मेरा है, परंतु मेरा है वही सच्चा है, इसका आग्रह नहीं रखना चाहिए।🌷 21) हमेशा गुणवान व्यक्तियों का ही साथ देना चाहिए। दुर्गुणी  व्यक्तियों का साथ नहीं देना चाहिए क्योंकि उनके पाप बुद्धि में और उछाल आता है। 🌷22 )जिन देशों में जाने की राजा द्वारा मनाई हो, वहां पर नहीं जाना चाहिए। जिस समय जो करने की राजाज्ञा हो वही करना चाहिए। धर्म का पालन करते हुए देश-काल देखना चाहिए।🌷23) अपनी शक्ति को देखकर ही कोई भी कार्य करना चाहिए। जिस कार्य को करने की स्वयं में शक्ति ना हो वह करने से धन तथा शारीरिक नुकसान उठाना पड़ सकता है ।🌷24) व्रतधारी वॄद्धजन तथा ज्ञानी व्यक्तियों का पूजक बनना चाहिए।🌷25) अपने घर पर आश्रित, पोषण करने योग्य सभी व्यक्तियों का पोषण करना चाहिए। मात्र अपना ही उदर पोषण नहीं  करना चाहिए।🌷 26 )हर एक कार्य करने से पहले उसके परिणाम का विचार करना चाहिए।🌷 27) विशेषज्ञ बनना चाहिए जिससे कृत्य- अकृत्य ,भक्ष्य-अभक्ष्य, मान -अपमान आदि की समझ पड़े।🌷28) किसी के उपकारों को भूलना नहीं चाहिए । 🌷29) सदाचार ,विवेक तथा विनय से लोगों में प्रिय बनना चाहिए। गलत कामों में हाॅ में हाॅ मिलाकर लोकप्रिय बनने वाले दोनों का नुकसान करते हैं।🌷 30 )कभी भी लज्जाहीन नहीं बनना चाहिए।🌷 31) दु:खी जीवो के प्रति दयालु बनना चाहिए।🌷 32 )शांत -चेहरा   हृदय वाला बनना चाहिए ।कषाययुक्त  स्वभाव अच्छा नहीं। 🌷33 ) परोपकार  करने के लिए सदा कटिबद्ध रहना चाहिए।🌷 34 ) बाह्य शत्रु की उपेक्षा कर राग, द्वेष ,मान, माया, लोभ आदि अभ्यंतर शत्रुओं का नाश करने के लिए प्रतिबद्ध रहना चाहिए। 🌷35) पांचों इंद्रियों के विषयों पर संयम रखने वाला बनना चाहिए।


प्रस्तुति 
- जे. के. संघवी /   ठाणे