.....मधुकर माधुर्य…..
श्री सौधर्मबृहत्तपागच्छीय
श्रीमद्विजय जयंतसेन सूरीश्वरजी म.सा.
⊰ मर्यादा ही जीवन है । अनुशासन प्रिय व्यक्ति ही मर्यादा का समुचित पालन कर सकता है । स्वच्छंदी मनुष्य अनुशासन एवं मर्यादा तोड़ने में लज्जित नहीं होता । उसकी निर्लज्जता कभी-कभी अपनी चरम स्थिति पर पहुँच जाती है । लगामयुक्त पशु की, जितनी कीमत होती है, उतनी निरंकुश पशु की नहीं । इसी प्रकार निरंकुश मनुष्य भी कहीं सन्मान नहीं पाता ।
- 22 जनवरी 1974
टीम वीर गुरुदेवाय
..विचारशुद्धि का साम्राज्य..