गणिवर्य श्री पद्मविमलसागरजी
• आजगणिवर्य श्री पद्मविमलसागरजी वर्षीतप के पारणे सादगी पूर्वक हो रहे हैं. कोई आयोजन नहीं हो सका हैं. *यह सोचकर मन में किसी प्रकार का खेद या दुःख न रखें.
• प्राचीन काल में तीर्थंकरों व महात्माओं ने जो भी तप किया, उसमें कर्मनिर्जरा का ही शुद्ध हेतु था. मनुष्य या देवताओं द्वारा किये गये महोत्सव से वे महापुरुष अलिप्त थे.
• आयोजन न होने के कारण अफसोस करने से तो तप का पुण्य नष्ट हो जायेगा.*
• तप कल्पवृक्ष है. निष्काम भाव से किया हुआ तप अनेक सिद्धियां दिलाता है, विघ्नों को दूर करता है. आहार की लालसा व मान-सम्मान की कामना से दूर रहकर किया गया तप ही सार्थक है.
• आदिनाथ प्रभु अदीन चित्त से साधना करते थे. 400 दिन तक उन्हें आहार न मिला, फिर भी वे संकल्प-विकल्प रहित समभाव पूर्वक तप करते रहे.* उन्हें याद कर अपना तप सफल किया जा सकता है.
• तपस्वी के मित्र-परिजन भी संकल्प लीजिये कि अपनी कमजोरियां व बुराइयां दूर कर तपस्वी को सही अर्थों में अर्घ्य अर्पित करें.तप के आध्यात्मिक स्वरूप को जीवंत रखकर ही मुक्ति का मार्ग प्रशस्त हो सकता है.
• सोच को बदलिये, जीवन बदल जायेगा !
(गणिवर्य आचार्य श्री विमलसागर सूरीस्वरजी म.सा.के शिष्य हैैं)
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