सबसे ज्यादा प्रभावित मजदूर वर्ग है
विनोद मिश्रा /मीरा-भायंदर
कोरोना वायरस ने धीरे धीरे विश्व आपदा की स्थिति पैदा कर दी है। भारत पर भी इसका व्यापक असर पड़ा है। लोगों से शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य के साथ -साथ रिश्ते नाते, अपनापन भी छीन गया है। ऐसे में इससे सर्वाधिक प्रभावित इस देश का मजदूर और गरीब तबका हुआ है। लॉक डाउन-1, लॉक डाउन-२, लॉक डाउन- 3 इस तीन चरणों मे लागू की लॉक डाउन ने इस वर्ग का धैर्य, सहनशीलता और सरकारों पर विस्वास टूट गया है। आज हालात ऐसे हैं कि कड़कड़ाती धूप, नंगे पैर, एक कंधे पर गठरी,दूसरे कंधे पर बच्चा, पसीने से तरबतर शरीर, आंखों में आंसू, चेहरे पर अज्ञात भय के साथ लोगों ने पैदल ही अपने गांव की तरफ निकल पड़े। उनकी दशा ,दुर्दशा देखकर रूह तक कांप जाती है लेकिन सियासत का कलेजा नही पसीजा..
आखिर प्रवासी मजदूरों के इस हालात का जिम्मेदार कौन. ? कार्य कर रहे राज्यों का वोटर नही होना..क्या यह इनके लिए अभिशाप बन गया..
लॉक डाउन के प्रथम चरण की शुरुआत 22 मार्च 2020 से 14 अप्रैल तक के लिए हुई थी। अचानक हुए इस लॉक डाउन में जो जहां था ।वहीं लॉक हो गया। इस अवधि में कई स्वयं सेवी संस्थाओं ने इंसानियत का परिचय देते हुए मजदूर ,गरीब और जरूरतमंदों के लिए दो वक्त की रोटी , राशन की व्यवस्था की। हालांकि राज्य सरकारों ने भी अपने स्तर से इनकी सहायता के लिए कदम उठाए लेकिन उनके कदम "कभी धूप-कभी छांव" जैसी रही। किसी तरह से 21 दिन की लॉक डाउन समाप्त होने का इंतज़ार कर रहे एक बड़े वर्ग को धीरे धीरे निराशा हाथ लगती गई और लॉक डाउन की अवधि बढ़ती रही। लोगों को लगने लगा कि यह लॉक डाउन अब जल्दी समाप्त नही होगी। काम बंद, रोजगार बन्द,घरों में राशन नही और गांव में रहने वाले अपनों की याद ने उनके जहन में यह बात भर दी कि" बस अब गांव" जाना है।
प्रवासी मजदूरों को उनके उत्तरप्रदेश, बिहार, बंगाल, उड़ीसा, कर्नाटक, आदि राज्यों में भेजने के लिए सरकारें हरकत में आई लेकिन कुछ ठोस नही कर पाई। इस मामले में राज्य सरकारों का केंद्र सरकार से तालमेल का बिल्कुल अभाव रहा। रेल मंत्रालय इस पर निर्णय लेने के लिए जानबूझकर टाल मटोल करती दिखी।
अशिक्षित ,गरीब मजदूर वर्ग को ऑन लाइन रजिस्ट्रेशन, ऑफ लाइन रजिस्ट्रेशन के चक्कर मे दर दर की ठोकरें खाते देखी गई। जिन्होंने रजिस्ट्रेशन करवाये उनका अभी तक कोई परिणाम सामने नही आया। राज्य सरकारें उन्हें बार बार ट्रेन से सुरक्षित उनके गांव पहुंचाने की बात करती रही ,लेकिन प्रवासी मजदूरों का धैर्य समाप्त हो चुका था। जिनके पास पैसे थे वे चोरी छिपे टेंपो, ट्रकों, यहां तक कि रेती सीमेंट की मिक्सिंग करने वाली मशीन के अंदर भेड़ बकरियों की तरह भर भर कर पलायन करने लगे।इसके बाद बचे कुछ प्रवासी मजदूर सायकल, मोटर सायकिल से पलायन कर गए।
" था तुझे गुरुर अपने लंबे होने का ऐ सड़क
गरीब के हौसले ने तुझे पैदल ही नाप लिया ..."
लॉक डाउन समाप्त होने का इंतज़ार करते करते लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूरों ने पैदल ही अपने गांव, अपने मुलुक, अपने राज्य में पहुंचने का निर्णय ले लिया है। झुंड के झुंड यह वर्ग प्रतिदिन मौसम, भूख ,तकलीफ, की परवाह किये बिना अपनी मंजिलों की तरफ चले जा रहे हैं। नेशनल हाइवे पर उनके पलायन का दिल दहला देने वाला दृश्य नज़र आता है। देश आजाद होने के बाद बंटवारे जैसा माहौल आज पुनः दिखाई देने लगा है। अफसोस उस समय तो दो देश की सरहदें बंटी थी आज राज्यों की सरहदें बंटी हुई दिखाई दे रही है।
भूख ले के आई थी शहर की तरफ
भूख ही गांव लौटा लिए जा रही है।
मतलबपरस्ती ने कहीं का न रखा
मजबूर मुफलिसी धक्के खा रही है।
लुटा पिटा है बेबसी का यह कारवाँ
पांव के छालों से पुकार आ रही है।
घर पहुंचेंगे भी की नही क्या है पता
बेचारगी मगर लिए चली जा रही है.......